Tuesday, November 16, 2010

बॉलीवुड का गिरता स्तर

बॉलीवुड ने हिंदुस्तानी समाज और हमारी संस्कृति को मजाक बना दिया है, जिससे कि इसका स्तर लगातार घटता ही जा रहा है। बॉलीवुड में गालियों का सिलसिला लगातार जारी है। गालियों का ये सिलसिला बॉलीवुड कोई नयी बात नहीं है, लेकिन एक हदतक। लेकिन आज के समय में गालियों का प्रयोग इतना ज्यादा बढ़ गया है कि मानो बॉलीबुड को फिल्में चर्चा में लाने की चाभी मिल गयी हो, जिससे कि फिल्म की पब्लिसिटी के लिए विवाद खड़ा हो सके और फिल्म दर्शकों की नजर में भी आ जाए। विशाल भारद्वाज ने अपनी फिल्म ओमकारा में पब्लिसिटी बटोरने के लिए भद्दी गालियों का प्रयोग किया। अजय देवगन, सैफ, या फिर विवेक हर किसी के मुंह से विशाल ने जी भर के गालियां निकलवाईं हैं। फिल्म कमीने के तो नाम में ही गाली है। वहीं बात करें एकता कपूर की फिल्म लव सेक्स और धोखाकुछ अलग है। फिल्म में इतने तजुर्बे कर लिए गए हैं कि लव सेक्स और धोखा रिलीज से पहले ही विवादों के घेरे में आ गई थी। सबसे बड़ा विवाद खड़ा हुआ इसके गाने पर "तू नंगी अच्छी लगती है"। फिल्म के गानों की सीडी आई तो शोर मचा और इसे भांपते हुए लव सैक्स और धोखा के गाने के बोल "तू नंगी अच्छी लगती है" से बदलकर "तू गंदी अच्छी लगती है" कर दिए गए। वहीं अमीर पीपली लाइव हो या फिर गोलमाल रिटर्न-3 हो गालियों का सिलसिला अब खुले आम जारी है। अब आप ही सोचिए कि इस तरह के गाने या फिल्में नौजवानो और बच्चों को गलत दिशा नहीं दिखा रही है। कहते हैं कि बच्चे फिल्मों से बहुत कुछ सीखते हैं तो क्या अब बच्चों और नौजवानों के बीच गालियो का ही मुद्दा रह जायेगा। बदलते जमाने की बदलती तस्वीर अब और कितने रंग बदलेगी। अब तो यही लगता है कि सेंसर बोर्ड भी इन गालियों को नजर अंदाज कर रहा है। तभी तो गालियों का सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अगर बॉलीवुड में गालियों का सिलसिला नहीं रोका गया तो इस बदलते जमाने की तस्वीर कुछ और कहती नजर आयेगी। हर किसी की जुबान पर गाली होगी और बात- बात पर मार देने की धमकी।

Thursday, November 11, 2010

मीडिया जगत


    आज जहां देखो मीडिया जगत की किरकिरी हो रही है.... सुबह-2 जब भी मै पास वाले ढ़ाबे पर चाय पीने जाता हूं... तो कभी- कभी कोई पास वाले भाई साहब न्यूज़ पेपर पढ़ते हुए बोलते हैं कि आज पेपर में कुछ भी तो खास नहीं है... बस पेपर तो पूरा एडवरटाइज़ से भरा हुआ है... पेपर और चैनल की किरकिरी आज आपको किसी भी गली या नुक्कड़ में सुनने को मिल सकती है.... पूछे जाने पर वजह बताते है कि चैनल किसी भी चीज को इतना ज्यादा बढ़ाचढ़ा कर पेश करता है कि लोगों को लगता है कि ये फ़ेक रहा है...और वहीं न्यूज़ पेपर तो एड के लिये निकाले जाते हैं....पूरे पेपर में ख़बरों से ज्यादा तो एड होते हैं.... मै जब भी कहीं ये शब्द सुनता हूं तो बस सोचता हूं कि क्या ये सच है ? क्यों कि मै खुद एक टीवी चैनल में काम कर रहा हूं और इतना तो पता है कि मीडिया अपने दर्शको को जगत में हो रही है हलचल से रूबरू कराने के लिये कई तरह के प्रयत्न करता है.... और एक खबर पाने के लिये वह कितनी मेहनत करता है... लेकिन मै जरूर मानता है कि टीआरपी का दबाब मीडिया पर लगातार बढ़ता ही जा रहा है... जिससे कि एक्सक्लूसिव खबरों पर ज्यादा तवज़्ज़ो देता है... लेकिन खबरों की अहमियत को भी वह बखूबी समझता है... इसीलिए दर्शक जो ज्यादा देखना पसंद करते हैं... टीवी चैनल भी वही दिखाता है.... अगर हम बॉलीवुड की बात करें तो आज फिल्मों में भी वही दिखता है.... जो लोग देखना पसंद करते हैं.... हालांकि फिल्मों के हिट या फ्लॉप करने की चाभी दर्शकों के हाथ में रहती है... उसी तरह से न्यूज़ चैनल भी वहीं दिखाते हैं जो आप देखना चाहते हैं। फिर इस तरह के सवाल क्यों और किसलिए ?  अरे भाई !  अगर रही विज्ञापनों की बात तो विज्ञापनों से ही मीडिया जगत की रोटी चलती है.... तो फिर इतने सवाल क्यों ?